अगर प्रोटोकॉल तोड़ने का मतलब है जनता का दर्द सुनना — तो हम हर जिले में ऐसा प्रोटोकॉल तोड़ने वाला डीएम चाहते हैं”

फोन न उठाना बना बहाना, असली निशाना तो ईमानदारी है!" अगर फोन उठाना अपराध है, तो सविन बंसल सबसे बड़े गुनाहगार हैं — जनता उनके साथ है!"

by news7point

देहरादून के जिलाधिकारी सविन बंसल पर आरोप नहीं, सम्मान बनता है — जनता की जबरदस्त प्रतिक्रिया से सोशल मीडिया से लेकर गलियों तक एक ही आवाज़: ‘हमारे डीएम साहब को छेड़ोगे, तो हम खड़े हो जाएंगे’

विशेष संवाददाता | गोविंद शर्मा 

देहरादून का नाम इन दिनों किसी पर्वतीय सौंदर्य या पर्यटन उत्सव को लेकर नहीं, बल्कि एक ईमानदार, कर्मठ और जनता के चहेते अधिकारी को लेकर देशभर में चर्चा में है — आईएएस सविन बंसल, जिलाधिकारी देहरादून।

मामला शुरू होता है एक फोन कॉल से।
किसी प्रोटोकॉल को लेकर फोन नहीं उठाया गया।
बस, यहीं से कुछ लोगों को “प्रोटोकॉल का उल्लंघन” नजर आ गया।
लेकिन अब सवाल देश के सबसे जागरूक राज्यों में से एक — उत्तराखंड की जनता — पूछ रही है कि “अगर डीएम साहब हर आम आदमी का फोन उठाते हैं, तो क्या एक ‘खास’ कॉल मिस हो जाना अपराध हो गया?”

💬 जनता की अदालत में फैसला साफ: सविन बंसल बेगुनाह नहीं, सबसे जरूरी हैं

आज उत्तराखंड के हर जिले से, हर वर्ग से, हर पीढ़ी से आवाजें उठ रही हैं —
“हमें ऐसा डीएम चाहिए जो नेता से पहले जनता को माने।”
“हमें वो अफसर नहीं चाहिए जो सिर्फ गाड़ियों के काफिले में चलता हो, हमें वो चाहिए जो बारिश में खुद मैदान में उतर जाए।”

सविन बंसल का नाम आज उत्तराखंड के उन अफसरों में सबसे ऊपर लिया जा रहा है, जिनकी सच्चाई, संवेदनशीलता और ज़मीनी पकड़ ने प्रशासन और जनता के बीच की खाई को पाट दिया है।

सिर्फ कुर्सी पर बैठने वाले डीएम नहीं हैं, ये फील्ड में चलने वाले अफसर हैं

जब पहाड़ों में भूस्खलन होता है —
तो सविन बंसल हेलीकॉप्टर में नहीं, घटनास्थल पर बूट पहनकर चलकर पहुंचते हैं।

जब छात्रों को रीडिंग रूम चाहिए होता है —
तो फाइलें तीन-तीन हफ्ते मंत्रालयों में नहीं घूमतीं, डीएम साहब अगले ही दिन कक्षा देखने पहुंच जाते हैं।

जब ग्रामीण अस्पताल में डॉक्टर नहीं होता —
तो समीक्षा बैठक नहीं बुलाई जाती, डीएम खुद अस्पताल में घुसकर हकीकत देखते हैं और पोस्टिंग तय करते हैं।

ये वो अधिकारी हैं जिन्होंने कभी मीडिया में खुद को प्रमोट नहीं किया,
बल्कि जनता में खुद को साबित किया है।

📞 “फोन तो हम जैसे गरीबों के भी उठाते हैं, नेता का छूट गया तो क्या हो गया?” — जनता का दर्द, जनता की ताकत

इस पूरे विवाद का सबसे बड़ा जवाब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वो मैसेज हैं जो हजारों लोग साझा कर रहे हैं:

“एक बार बेटी के इलाज के लिए फोन किया था, डीएम साहब ने खुद अस्पताल फोन कर व्यवस्था करवाई।”

“हमारे गांव में 12 साल से कोई सरकारी निरीक्षण नहीं हुआ था, पर बंसल साहब ने दो बार खुद दौरा किया।”

“फोन उठाना अगर गुनाह है, तो हमें हर जिले में ऐसा गुनाहगार डीएम चाहिए।”

लोग खुद कह रहे हैं कि
“डीएम साहब ने कभी नाम नहीं देखा, उन्होंने सिर्फ समस्या सुनी और तुरंत समाधान किया।”

🏅 पद नहीं, पहचान बन गए हैं डीएम बंसल

यह बात सच है कि सरकारी अफसर बहुत आते-जाते हैं।
लेकिन बहुत कम अफसर होते हैं जो किसी जिले की यादों में नहीं, दिलों में बस जाते हैं।
सविन बंसल ऐसे ही अधिकारी बन चुके हैं।

उनकी पहचान सिर्फ एक “डीएम” की नहीं है,
वो अब जनता के प्रतिनिधि बन चुके हैं — बिना चुनाव लड़े, बिना रैली किए।

वह स्कूल में बच्चों के साथ बैठ जाते हैं,

वह वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के साथ भोजन करते हैं,

वह राशन गोदाम में गुपचुप जाकर जांच करते हैं,

वह रात 11 बजे किसी परिवार की आपदा में संवेदना बनकर पहुंचते हैं।

क्या ये सब “प्रोटोकॉल” का उल्लंघन है?
तो उत्तराखंड को ऐसे हजारों उल्लंघन चाहिए।

 राजनीति बनाम जनसेवा — इस बार जनता की जीत तय है

कुछ लोग इस मामले को राजनीतिक मुद्दा बनाकर ऐसे अफसर की छवि खराब करना चाहते हैं जो जनता की सेवा के लिए रात-दिन एक कर रहा है।
पर जो अधिकारी जनता के साथ खड़ा हो, उसे साजिशें नहीं हिला सकतीं।

आज विपक्षी दलों के कार्यकर्ता तक कह रहे हैं कि “अगर कोई अधिकारी सच में ईमानदारी से काम करता है तो वो सविन बंसल हैं।”

ये सिर्फ समर्थन नहीं,
यह सच्चाई के पक्ष में खड़ी पूरी जनता की हुंकार है।

Related Posts